अप्रतिम कविताएँ
वो हवा वहीं ठहरी है
वो हवा वहीं ठहरी है अभी तक
और छूती है रोज
लगभग रोक लेती हुई सी
जब गुजरने लगता हूँ वहाँ से
जहाँ उस दिन गुजरते फोन आ गया था तुम्हारा
और थोड़ी देर के लिए आस पास
चम्पा के फूल खिल आये थे
अपनी साँसों में समेटते हुए
कई सा हरा रंग ओढ़ लिया था धरती ने
और कोंपलें निकल आई थीं डालियों में

जो प्राण को सुहाना कर देता है
लिपे हुए आँगन सा
और नये पुआल से सजे घर सा
जो जुगनुओं से पाट देता है आकाश को
और दूबों से भोर
बौना करके कलह सारा
खुशबू के इस ठहराव और
रंगों के ऐसे रुक जाने के लिए
हवा के ऐसे ठिठक जाने और
रचना की खिलखिलाहट के लिए
तुम्हें, मुझे
और दुनिया के तमाम लोगों को
प्यार करते रहना चाहिये

- प्रकाश देवकुलिश
विषय:
प्रेम (62)
बीता समय (17)

काव्यालय को प्राप्त: 22 Jul 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 10 Sep 2021

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 वो हवा वहीं ठहरी है
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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