अप्रतिम कविताएँ
मित्र सहेजो
मित्र सहेजो
हम जंगल से धूप-छाँव लेकर आये हैं

पगडण्डी पर वे बैठी थीं पाँव पसारे
पेड़ों ने थे फगुनाहट के बोल उचारे

उन्हें याद थे
ऋषियों ने जो मंत्र सूर्यकुल के गाये हैं

वनकन्या की हँसी - नेह उसके हिरदय का
उन्हें सँजोओ - छँट जायेगा धुंध समय का

इन्हें न टेरो
घिरे शहर में धुएँ-धुंध के जो साये हैं

आधी रातों के निर्णय हैं सभागार में
टँगी हुईं सूरज की छवियाँ राजद्वार में

उन्हें दिशा दो
जो शाहों के संवादों से भरमाये है



- कुमार रवीन्द्र

काव्यालय को प्राप्त: 16 Jan 2018. काव्यालय पर प्रकाशित: 11 Jan 2019

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 मित्र सहेजो
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इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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