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बरसों के बाद कहीं
बरसों के बाद कभी
हमतुम यदि मिलें कहीं,
देखें कुछ परिचित से,
लेकिन पहिचानें ना।
याद भी न आये नाम,
रूप, रंग, काम, धाम,
सोचें,
यह सम्मभव है -
पर, मन में मानें ना।
हो न याद, एक बार
आया तूफान, ज्वार
बंद, मिटे पृष्ठों को -
पढ़ने की ठाने ना।
बातें जो साथ हुई,
बातों के साथ गयीं,
आँखें जो मिली रहीं -
उनको भी जानें ना।
-
गिरिजा कुमार माथुर
काव्यपाठ:
विनोद तिवारी
काव्यालय पर प्रकाशित: 1 Feb 2019
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जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 2 मूल तरकीब
वाणी मुरारका
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