त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पतिवेदनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुतः ।।
(यजु. 3/60)
त्र्यम्बक प्रभु को भजे निरन्तर !
जीवन में सुगन्ध भरते प्रभु,
करते पुष्ट देह, अभ्यन्तर !
लता-बन्ध से टूटे, छूटे खरबूजे से
जब हम टूटें, जब हम छूटें मृत्यु-बन्ध से,
पृथक न हों प्रभु के अमृत से !
त्र्यम्बक प्रभु को जपें निरन्तर !
जीवन में सुगन्ध भरते प्रभु
स्वजनों का संरक्षण देकर !
लता-बन्ध से टूटे, छूटे खरबूजे से
जब हम टूटें, जब हम छूटें देह-बन्ध से,
पृथक न हों प्रभु के अमृत से !
काव्यालय को प्राप्त: 25 Sep 2023.
काव्यालय पर प्रकाशित: 17 Nov 2023