Receive exquisite poems.
स्त्री चल देती है चुप चाप
एक दिन स्त्री चल देती है चुपचाप... दबे पाँव!
यह उसके प्रस्थान का सबसे अहम् पहलू है
और जाहिर सी बात है कि आदमी इस बात को समझ नहीं पाते।
बोलती, कुछ शिकायत करती और झगडती स्त्री
अचानक चुप्पी के इलाके में प्रवेश कर जाती है।
जब अंतिम तौर पर टूट जाती है रिश्ते पर से उसकी आखिरी आस
उसका प्यार हो जाता है लहूलुहान।
मन ही मन वो समेटती है अपने साजो सामान सूटकेस के अन्दर,
अपने दिमाग के अन्दर ही वो खरीदती है अपने लिए सफ़र का टिकट
हाँलाकि उसका शरीर ऊपरी तौर पर करता रहता है सब कुछ यथावत।
इस तरह स्त्री निकल जाती है रिश्ते के दरवाजे से बाहर।
सचमुच ऐसे प्रस्थान कर जाने वाली स्त्री के पदचाप नहीं सुनाई देते
आहट नहीं होती उसकी कोई।
वह अपना बोरिया बिस्तर ऐसे समेटती है
कि किसी को कानों कान खबर नहीं होती,
वो दरवाज़े को भिडकाये बगैर निकल जाती है।
जब तलक सांझ को घर लौटने पर स्त्री खोलने को रहती है तत्पर दरवाज़ा
समझता नहीं आदमी उस स्त्री का वजूद
एकदिन बगैर कोई आवाज किये चली जाती है स्त्री चुपचाप।
फिर रसोई में जो स्त्री बनाती है खाना
बगल में बैठ कर जो देखती है टी वी
रात में अपनी रूह को परे धर कर जो स्त्री
कर लेती है बिस्तर में जैसे तैसे प्रेम
वह लगती भले वैसी ही स्त्री हो पर पहले वाली स्त्री नहीं होती।

स्त्रियों के कातर स्वर से… उनके झगड़ों से डरना मुनासिब नहीं
क्योंकि वे इतनी शालीनता और चुप्पी से करती हैं प्रस्थान
कि कोई आहट भी नहीं होती।
- जमाल सुरेया
- अनुवाद : यादवेन्द्र

काव्यालय पर प्रकाशित: 17 Jul 2020

***
This Month :
'Khidkee aur Kiran'
Nupur Ashok


har roj़ kee tarah
roshanee kee kiraN
aaj bhee bhaagatee huee aaee
us kamare men phudakane ke lie
mej़ ke TukaD़e karane ke lie
palang par so rahane ke lie

bhaagatee huee us kiraN ne
..

Read more here...
This Month :
'Kiran'
Siyaram Sharan Gupt


gyaat naheen jaanen kis dvaar se
kaun se prakaar se,
mere gRhakakSh men,
dustar-timiradurg-durgam-vipakSh men-
ujjval prabhaamayee
ekaaek komal kiraN ek aa gayee.
beech se a(n)dhere ke
..

Read more here...
This Month :
'Roshnee'
Madhup Mohta


raat, har raat bahut der gae,
teree khiḌakee se, roshanee chhanakar,
mere kamare ke daro-deevaaron par,
jaise dastak see diyaa karatee hai.

main khol detaa hoo(n) ..

Read more here...
random post | poem sections: shilaadhaar yugavaaNee nav-kusum kaavya-setu | pratidhwani | kaavya-lekh
contact us | about us
Donate

a  MANASKRITI  website