अप्रतिम कविताएँ
एक रात
अँधियारे जीवन-नभ में
बिजुरी-चमक गयी तुम!

सावन झूला झूला जब
बाँहों में रमक गयीं तुम!

कजली बाहर गूँजी जब
श्रुति-स्वर-सी गमक गयीं तुम!

महकी गंध त्रियामा जब
पायल-झमक गयीं तुम!

तुलसी-चौरे पर आकर
अलबेली छमक गयीं तुम!

सूने घर-आँगन में आ
दीपक-सी दमक गयीं तुम!
- डा. महेन्द्र भटनागर

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'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

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आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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