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एक रात
अँधियारे जीवन-नभ में
बिजुरी-चमक गयी तुम!
सावन झूला झूला जब
बाँहों में रमक गयीं तुम!
कजली बाहर गूँजी जब
श्रुति-स्वर-सी गमक गयीं तुम!
महकी गंध त्रियामा जब
पायल-झमक गयीं तुम!
तुलसी-चौरे पर आकर
अलबेली छमक गयीं तुम!
सूने घर-आँगन में आ
दीपक-सी दमक गयीं तुम!
- डा. महेन्द्र भटनागर
Dr. Mahendra Bhatnagar
Email :
[email protected]
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दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..
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सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
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ब्रज श्रीवास्तव
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बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी
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अप्रैल 2023 – मार्च 2024
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