अप्रतिम कविताएँ
भोर का गीत
भोर की लाली हृदय में राग चुप-चुप भर गयी!

     जब गिरी तन पर नवल पहली किरन
     हो गया अनजान चंचल मन-हिरन
     प्रीत की भोली उमंगों को लिए
     लाज की गद-गद तरंगों को लिए
प्रात की शीतल हवा आ, अंग सुरभित कर गयी!

     प्रिय अरुण पा जब कमलिनी खिल गयी
     स्वर्ग की सौगात मानों मिल गयी,
     झूमती डालें पहन नव आभरण,
     हर्ष-पुलकित किस तरह वातावरण,
भर सुनहरा रंग, ऊषा कर गयी वसुधा नयी!
- डा. महेन्द्र भटनागर
विषय:
प्रकृति (38)
उषा काल (5)

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
डा. महेन्द्र भटनागर
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 एक रात
 कौन तुम
 भोर का गीत
 माँझी
इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'एक मनःस्थिति '
शान्ति मेहरोत्रा


कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
मेरी गरम साँसों से पिघल कर
मोम-सी बह गई हैं।

केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'खिलौने की चाबी'
नूपुर अशोक


इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी
कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website