अप्रतिम कविताएँ
भोर का गीत
भोर की लाली हृदय में राग चुप-चुप भर गयी!

     जब गिरी तन पर नवल पहली किरन
     हो गया अनजान चंचल मन-हिरन
     प्रीत की भोली उमंगों को लिए
     लाज की गद-गद तरंगों को लिए
प्रात की शीतल हवा आ, अंग सुरभित कर गयी!

     प्रिय अरुण पा जब कमलिनी खिल गयी
     स्वर्ग की सौगात मानों मिल गयी,
     झूमती डालें पहन नव आभरण,
     हर्ष-पुलकित किस तरह वातावरण,
भर सुनहरा रंग, ऊषा कर गयी वसुधा नयी!
- डा. महेन्द्र भटनागर
विषय:
प्रकृति (41)
उषा काल (5)

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चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।

धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

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