अप्रतिम कविताएँ
ध्वनित आह्वान

बंगला मूल

ध्वनिलो आह्वान


ध्वनिलो आह्वान मधुर गम्भीर प्रभात-अम्बर-माझे,
दिके दिगन्तरे भुवन मन्दिरे शान्तिसंगीत बाजे॥

हेरो गो अन्तरे अरुपसुन्दरे, निखिल संसारे परमबन्धुरे,
एसो आनन्दित मिलन-अंगने शोभन मंगल साजे॥

कलुष कल्मष विरोध विद्वेष होउक निःशेष
चित्ते होक जॉतो विघ्न अपगत नित्य कल्याणकाजे।

स्वर तरंगिया गाओ विहंगम, पूर्वपश्चिम बन्धु-संगम,
मैत्री-बन्धन पुण्य-मन्त्र पवित्र विश्वसमाजे॥

- रवीन्द्रनाथ ठाकुर

हिन्दी गीतान्तर

ध्वनित आह्वान


ध्वनित आह्वान, गहन सुमधुर, नित प्रभात-आकाश में।
दिग्-दिगन्तर, भुवन-मन्दिर, शान्ति-स्वर गुञ्जारें॥

निरखो उर में अरूप सुन्दर, निखिल जग में परम बान्धव।
आओ मुद-मन मिलन-आँगन, रुचिर मंगल साज में॥

कलुष, द्वेष, विरोध, कल्मष, शेष होवें, हों वे निर्मल,
चित्त् के हों विघ्न अपगत, नित्य मंगल-काज में।

गाओ ये स्वर, हे विहंगम! पूर्व-पश्चिम-बंधु-संगम,
मैत्री-बन्धन पुण्य-मंत्र पवित्र विश्वसमाज में॥

- दाऊलाल कोठारी (हिन्दी गीतान्तर)

- रवीन्द्रनाथ टगोर
- अनुवाद : दाऊलाल कोठारी

***
रवीन्द्रनाथ टगोर
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 अभिसार
 क्यूँ भिजोये ना
 जन गण मन
 ध्वनित आह्वान
इस महीने :
'अमरत्व'
क्लेर हार्नर


कब्र पे मेरी बहा ना आँसू
हूँ वहाँ नहीं मैं, सोई ना हूँ।

झोंके हजारों हवाओं की मैं
चमक हीरों-सी हिमकणों की मैं
शरद की गिरती फुहारों में हूँ
फसलों पर पड़ती...
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website