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 बंगला मूल 
ध्वनिलो आह्वान 
 
ध्वनिलो आह्वान मधुर गम्भीर प्रभात-अम्बर-माझे, 
दिके दिगन्तरे भुवन मन्दिरे शान्तिसंगीत बाजे॥ 
 
हेरो गो अन्तरे अरुपसुन्दरे, निखिल संसारे परमबन्धुरे, 
एसो आनन्दित मिलन-अंगने शोभन मंगल साजे॥ 
 
कलुष कल्मष विरोध विद्वेष होउक निःशेष 
चित्ते होक जॉतो विघ्न अपगत नित्य कल्याणकाजे। 
 
स्वर तरंगिया गाओ विहंगम, पूर्वपश्चिम बन्धु-संगम, 
मैत्री-बन्धन पुण्य-मन्त्र पवित्र विश्वसमाजे॥ 
  
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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 हिन्दी गीतान्तर 
ध्वनित आह्वान 
 
ध्वनित आह्वान, गहन सुमधुर, नित प्रभात-आकाश में। 
दिग्-दिगन्तर, भुवन-मन्दिर, शान्ति-स्वर गुञ्जारें॥ 
 
निरखो उर में अरूप सुन्दर, निखिल जग में परम बान्धव। 
आओ मुद-मन मिलन-आँगन, रुचिर मंगल साज में॥ 
 
कलुष, द्वेष, विरोध, कल्मष, शेष होवें, हों वे निर्मल, 
चित्त् के हों विघ्न अपगत, नित्य मंगल-काज में। 
 
गाओ ये स्वर, हे विहंगम! पूर्व-पश्चिम-बंधु-संगम, 
मैत्री-बन्धन पुण्य-मंत्र पवित्र विश्वसमाज में॥ 
  
- दाऊलाल कोठारी (हिन्दी गीतान्तर)
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