अप्रतिम कविताएँ
चाँदनी जगाती है
आजकल तमाम रात
चाँदनी जगाती है|

मुँह पर दे दे छींटे
अधखुले झरोखे से
अन्दर आ जाती है
दबे पाँव धोखे से
माथा छू
निंदिया उचटाती है
बाहर ले जाती है
घण्टों बतियाती है
ठण्डी-ठण्डी छत पर
लिपट-लिपट जाती है
विह्वल मदमाती है
बावरिया बिना बात|

आजकल तमाम रात
चाँदनी जगती है|
- धर्मवीर भारती
पुस्तक "पाँच जोड़ बाँसुरी" (सम्पादक: चंद्रदेव सिंह - भारतीय ज्ञानपीठ) से

काव्यालय पर प्रकाशित: 13 Oct 2016

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कब्र पे मेरी बहा ना आँसू
हूँ वहाँ नहीं मैं, सोई ना हूँ।

झोंके हजारों हवाओं की मैं
चमक हीरों-सी हिमकणों की मैं
शरद की गिरती फुहारों में हूँ
फसलों पर पड़ती...
..

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