अप्रतिम कविताएँ
बीती विभावरी जाग री!

बीती विभावरी जाग री!
                  अम्बर पनघट में डुबो रही
                  तारा घट ऊषा नागरी।
खग कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
                  लो यह लतिका भी भर लाई
                  मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
                  तू अब तक सोई है आली
                  आँखों में भरे विहाग री।
- जयशंकर प्रसाद
काव्यपाठ: उर्मिला प्रसाद
विभावरी : रात। आली : सखि
चित्रकला : नूपुर अशोक। एनिमेशन : सुकन्या दे। वीडियो निर्देशन : वाणी मुरारका

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मेरे लिए, मेरे पिता
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एकांत की खोह में जब जाता हूँ
बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी
..

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