अप्रतिम कविताएँ

प्रयाणगीत
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती -
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती -
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो।

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी।
अराति सैन्य सिंधु में - सुबाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो।
- जयशंकर प्रसाद
काव्यपाठ: विनोद तिवारी

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ब्रज श्रीवास्तव


मेरे लिए, मेरे पिता
तुम्हारे लिए, तुम्हारे पिता जैसे नहीं हैं,

एकांत की खोह में जब जाता हूँ
बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी
..

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