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'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'
सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।
छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
...
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा
सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
...
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'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय
आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!
सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!
...
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Basic Structure of Hindi Poetry
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शिलाधार
- 20वी सदी के पूर्व हिन्दी का शिलाधार काव्य
युगवाणी
- 20वी सदी के प्रारम्भ से समकालीन काव्य
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- उभरते कवियों की रचनाएँ
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मुक्तक
- मोती समान पंक्तियों का चयन
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सामान्यतः महीने का प्रथम और तीसरा शुक्रवार
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