अप्रतिम कविताएँ
तबीयत से उछालो यारो
यह जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो,
अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो।

दर्दे दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा,
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो।

लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे,
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो।

आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे,
आज संदूक से वे ख़त तो निकालो यारो।

कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।

लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की,
तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो।
- दुष्यन्त कुमार
शहतीर : लम्बी लकड़ी, लठ्ठ; सय्याद : शिकारी; सीवन : सिलाई ; सूराख़ : छेद

काव्यालय पर प्रकाशित: 14 Oct 2022

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भाग 5 गीतों की ओर

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'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 4 कई गीत और कविताएँ (16 मात्रा)

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कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!

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              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 2 मूल तरकीब

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