सूर्य, तुम्हें देखते-देखते
मैं वृद्ध हो गया।
लोग कहते हैं,
मैंने तुम्हारी किरणें पी हैं,
तुम्हारी आग को
पास बैठकर तापा है।
और अफ़वाह यह भी है
कि मैं बाहर से बली
और भीतर से समृद्ध हो गया।
मगर राज़ की बात कहूँ,
तो तुम्हें कलंक लगेगा।
ताकत मुझे अब तुमसे नहीं,
अन्धकार से मिलती है।
जहाँ तक तुम्हारी किरणें
नहीं पहुँचतीं,
उस गुफा के हाहाकार से मिलती है।