अप्रतिम कविताएँ
लेन-देन
लेन-देन का हिसाब
          लंबा और पुराना है।

जिनका कर्ज हमने खाया था,
          उनका बाकी हम चुकाने आये हैं।
और जिन्होंने हमारा कर्ज खाया था,
          उनसे हम अपना हक पाने आये हैं।

लेन-देन का व्यापार अभी लंबा चलेगा।
          जीवन अभी कई बार पैदा होगा
                    और कई बार जलेगा।

और लेन-देन का सारा व्यापार
                जब चुक जायेगा,
          ईश्वर हमसे खुद कहेगा -

          तुम्हार एक पावना मुझ पर भी है,
          आओ, उसे ग्रहण करो।
          अपना रूप छोड़ो,
          मेरा स्वरूप वरण करो।
- रामधारी सिंह 'दिनकर'
Ref: Hare Ko Harinaam
Pub: Udayachal, Rajendra Nagar, Patna-16
विषय:
जीवन (37)
अध्यात्म दर्शन (34)

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जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

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कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
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केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

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..

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