अप्रतिम कविताएँ
स्मृति दीप
भग्न उर की कामना के दीप,
         तुम, कर में लिये,
मौन, निमंत्रण, विषम, किस साध में हो बाँटती?
         है प्रज्वलित दीप, उद्दीपित करों पे,
                 नैन में असुवन झड़ी!
         है मौन, होठों पर प्रकम्पित,
                 नाचती, ज्वाला खड़ी!
बहा दो अंतिम निशानी, जल के अंधेरे पाट पे,
' स्मृतिदीप ' बन कर बहेगी, यातना, बिछुड़े स्वजन की!
         एक दीप गंगा पे बहेगा,
                 रोयेंगी, आँखें तुम्हारी।
     धुप अँधकाररात्रि का तमस।
         पुकारता प्यार मेरा तुझे, मरण के उस पार से!
बहा दो, बहा दो दीप को
         जल रही कोमल हथेली!
     हा प्रिया! यह रात्रिवेला औ
         सूना नीरवसा नदी तट!
नाचती लौ में धूल मिलेंगी,
         प्रीत की बातें हमारी!
- लावण्या शाह

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 अनुनय
 स्मृति दीप
इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
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दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
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इस महीने :
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इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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