अप्रतिम कविताएँ
स्मृति दीप
भग्न उर की कामना के दीप,
         तुम, कर में लिये,
मौन, निमंत्रण, विषम, किस साध में हो बाँटती?
         है प्रज्वलित दीप, उद्दीपित करों पे,
                 नैन में असुवन झड़ी!
         है मौन, होठों पर प्रकम्पित,
                 नाचती, ज्वाला खड़ी!
बहा दो अंतिम निशानी, जल के अंधेरे पाट पे,
' स्मृतिदीप ' बन कर बहेगी, यातना, बिछुड़े स्वजन की!
         एक दीप गंगा पे बहेगा,
                 रोयेंगी, आँखें तुम्हारी।
     धुप अँधकाररात्रि का तमस।
         पुकारता प्यार मेरा तुझे, मरण के उस पार से!
बहा दो, बहा दो दीप को
         जल रही कोमल हथेली!
     हा प्रिया! यह रात्रिवेला औ
         सूना नीरवसा नदी तट!
नाचती लौ में धूल मिलेंगी,
         प्रीत की बातें हमारी!
- लावण्या शाह

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दिव्या ओंकारी ’गरिमा’


झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।

झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।

तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..

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