अप्रतिम कविताएँ
अनुनय
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
     अधर अधर से छू लेने दो!
है बात वही, मधुपाश वही,
     सुरभि सुधारस पी लेने दो!
         अधर अधर से छू लेने दो!
कंवल पंखुरी लाल लजीली,
     है थिरक रही, नई कुसुम सी!
रश्मिनूतन को, सह लेने दो!
          मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
तुम जीवन की मदमाती लहर,
          है वही डगर,
डगमग पग भर,
     सुखसुमन-सुधा रस पी लेने दो!
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
     अधर अधर से छू लेने दो!
- लावण्या शाह

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भाग 2 मूल तरकीब

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वाणी मुरारका
इस महीने :
'कामायनी ('निर्वेद' सर्ग के कुछ छंद)'
जयशंकर प्रसाद


तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन!

विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक-सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन!

चिर-विषाद-विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर-वन की;
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
'बेकली महसूस हो तो'
विनोद तिवारी

बेकली महसूस हो तो गुनगुना कर देखिये।
दर्द जब हद से बढ़े तब मुस्कुरा कर देखिये।

रूठते हैं लोग बस मनुहार पाने के लिए
लौट आएगा, उसे फिर से बुला कर देखिये।

आपकी ही याद में शायद वह हो खोया हुआ
पास ही होगा कहीं, आवाज़ देकर देखिये।

हारती है बस मोहब्बत ही ख़ुदी के खेल में
हार कर अपनी ख़ुदी, उसको...

पूरी ग़ज़ल यहां पढ़ें
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी


कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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