सखी, इन नैनन तें घन हारे ।
बिन ही रितु बरसत निसि बासर, सदा मलिन दोउ तारे ॥
ऊरध स्वाँस समीर तेज अति, सुख अनेक द्रुम डारे ।
दिसिन्ह सदन करि बसे बचन-खग, दुख पावस के मारे ॥
सुमिरि-सुमिरि गरजत जल छाँड़त, अंसु सलिल के धारे ॥
बूड़त ब्रजहिं 'सूर' को राखै, बिनु गिरिवरधर प्यारे ॥
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सूरदास