अप्रतिम कविताएँ
रचना और तुम
मेरी रचना के अर्थ बहुत हैं
जो भी तुमसे लग जाय लगा लेना

मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर
दुनियाँ में जिनका कुछ आधार नहीं
मैं आँख मिलाता हूँ उन आँखों से
जिनका कोई भी पहरेदार नहीं

आँखों की भाषा तो अनगिन हैं
जो भी सुन्दर हो वह समझा देना।

पूजा करता हूँ उस कमजोरी की
जो जीने को मजबूर कर रही है।
मन ऊब रहा है अब इस दुनिया से
जो मुझको तुमसे दूर कर रही है

दूरी का दुख बढ़ता जाता है
जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना

कहता है मुझ से उड़ता हुआ धुँआ
रुकने का नाम न ले तू चलता जा
संकेत कर रहा है नभ वाला घन
प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा

पर मैं प्यासा हूँ मरूस्थल सा
यह बात समंदर को समझा देना

चाँदनी चढ़ाता हूँ उन चरणों पर
जो अपनी राहें आप बनाते हैं
आवाज लगाता हूँ उन गीतों को
जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं

मधुवन में सोये गीत हजारों है
जो भी तुमसे जग जाए जगा लेना
- रमानाथ अवस्थी
Poet's Address: 14/11, C-4 C Janakpuri, New Delhi
Ref: Naye Purane, September,1998

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 लाचारी
 हम-तुम
'बेकली महसूस हो तो'
विनोद तिवारी

बेकली महसूस हो तो गुनगुना कर देखिये।
दर्द जब हद से बढ़े तब मुस्कुरा कर देखिये।

रूठते हैं लोग बस मनुहार पाने के लिए
लौट आएगा, उसे फिर से बुला कर देखिये।

आपकी ही याद में शायद वह हो खोया हुआ
पास ही होगा कहीं, आवाज़ देकर देखिये।

हारती है बस मोहब्बत ही ख़ुदी के खेल में
हार कर अपनी ख़ुदी, उसको...

पूरी ग़ज़ल यहां पढ़ें
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी


कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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