अप्रतिम कविताएँ
प्यार गंगा की धार
रजनी जग को सुलाये
सहे तिमिर का वार
नभ खुश हो पहनाये
चांद-तारों का हार

बन के खुद आइना रहा रूप को निखार
प्यार गंगा की धार

भूख सह कर भी मां
दर्द से जार-जार
तृप्त कर दे शिशु को
कैसी खुश हो अपार

भर के बांहों में वह करे असुंवन संचार
प्यार गंगा की धार

भक्त सहते गये
दुष्ट दैत्यों की मार
किया जगजननी ने
राक्षसों पर प्रहार

माँ की लीली कहे करुणा जीवन का सार
प्यार गंगा की धार

प्रकृति मां का रूप
झेले जगति का भार
लालची नर करे
दासी जैसा व्यवहार

छेद ना कर मूरख जबकि नैया मंझदार
प्यार गंगा की धार

क्रोध मद लोभ से
हुआ जीवन दुष्वार
काम से निकला प्रेम -
पुष्प के रस का तार

बांध कर ले गया स्वार्थ-लिप्सा के पार
प्यार गंगा की धार।
- हरिहर झा
Harihar Jha
email: [email protected]
विषय:
प्रेम (60)
विविध (11)
माँ ममता (5)

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ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

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