अप्रतिम कविताएँ
प्यार गंगा की धार
रजनी जग को सुलाये
सहे तिमिर का वार
नभ खुश हो पहनाये
चांद-तारों का हार

बन के खुद आइना रहा रूप को निखार
प्यार गंगा की धार

भूख सह कर भी मां
दर्द से जार-जार
तृप्त कर दे शिशु को
कैसी खुश हो अपार

भर के बांहों में वह करे असुंवन संचार
प्यार गंगा की धार

भक्त सहते गये
दुष्ट दैत्यों की मार
किया जगजननी ने
राक्षसों पर प्रहार

माँ की लीली कहे करुणा जीवन का सार
प्यार गंगा की धार

प्रकृति मां का रूप
झेले जगति का भार
लालची नर करे
दासी जैसा व्यवहार

छेद ना कर मूरख जबकि नैया मंझदार
प्यार गंगा की धार

क्रोध मद लोभ से
हुआ जीवन दुष्वार
काम से निकला प्रेम -
पुष्प के रस का तार

बांध कर ले गया स्वार्थ-लिप्सा के पार
प्यार गंगा की धार।
- हरिहर झा
Harihar Jha
email: [email protected]
विषय:
प्रेम (62)
विविध (11)
माँ ममता (5)

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 प्यार गंगा की धार
इस महीने :
'तुम्हारे साथ रहकर'
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना


तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।

हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने
..

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इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

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इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

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इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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