अप्रतिम कविताएँ
प्रेम अक्षत
आप सुन तो रहें हैं
मेरे गीत यह,
मन के मन्दिर में दीपक
जलाये तो हैं
आपके सामने बैठ कर
अनगिनत, अश्रु पावन
नयन से गिराये तो हैं
नेह की डालियों से
सुगन्धित सुमन
सांवरे श्री चरण पर
चढ़ाये तो हैं
मेरी पूजा में रोली
न चन्दन प्रिय
भाल पर प्रेम अक्षत
लगाये तो हैं
क्यों मैं घंटा ध्वनि से
जगाऊं तुम्हें
साज, सरगम के स्वर
गुनगुनाये तो हैं
भूल न जाना कभी
यह तुच्छ भक्ति मेरी
भाव कविता में गढ़
कर सुनाये तो हैं
यह जन्म आपके
रंग में रंग लिया
स्वप्न अगले जन्म के
सजाये तो हैं।
- आभा सक्सेना
विषय:
भक्ति और प्रार्थना (30)

काव्यालय को प्राप्त: 2 Feb 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 5 Feb 2021

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 कैसा परिवर्तन
 प्रेम अक्षत
इस महीने :
'एक आशीर्वाद'
दुष्यन्त कुमार


जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
..

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इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

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जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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