अप्रतिम कविताएँ
प्रेम अक्षत
आप सुन तो रहें हैं
मेरे गीत यह,
मन के मन्दिर में दीपक
जलाये तो हैं
आपके सामने बैठ कर
अनगिनत, अश्रु पावन
नयन से गिराये तो हैं
नेह की डालियों से
सुगन्धित सुमन
सांवरे श्री चरण पर
चढ़ाये तो हैं
मेरी पूजा में रोली
न चन्दन प्रिय
भाल पर प्रेम अक्षत
लगाये तो हैं
क्यों मैं घंटा ध्वनि से
जगाऊं तुम्हें
साज, सरगम के स्वर
गुनगुनाये तो हैं
भूल न जाना कभी
यह तुच्छ भक्ति मेरी
भाव कविता में गढ़
कर सुनाये तो हैं
यह जन्म आपके
रंग में रंग लिया
स्वप्न अगले जन्म के
सजाये तो हैं।
- आभा सक्सेना
विषय:
भक्ति और प्रार्थना (31)

काव्यालय को प्राप्त: 2 Feb 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 5 Feb 2021

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 कैसा परिवर्तन
 प्रेम अक्षत
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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