अप्रतिम कविताएँ

फिर मन में ये कैसी हलचल ?
           वर्षों से जो मौन खड़े थे
           निर्विकार निर्मोह बड़े थे
उन पाषाणों से अब क्यूँकर अश्रुधार बह निकली अविरल
           फिर मन में ये कैसी हलचल ?

           निश्चल जिनको जग ने माना
           गुण-स्वभाव से स्थिर नित जाना
चक्रवात प्रचंड उठते हैं क्यूँ अंतर में प्रतिक्षण, प्रतिपल
           फिर मन में ये कैसी हलचल ?

           युग बीते जिनसे मुख मोड़ा
           जिन स्मृतियों को पीछे छोड़ा
अब क्यूँ बाट निहारें उनकी पलपल होकर लोचन विह्वल?
           फिर मन में ये कैसी हलचल ?
- अर्चना गुप्ता
Archana Gupta
Email : [email protected]
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 इक कविता
 फिर मन में ये कैसी हलचल ?
इस महीने :
'पावस गीत'
प्रभात कुमार त्यागी


पुल बारिश का!
बिना ओढ़नी हवा घूमती
सबने देखा
पुल बारिश का!

मेघों से धरती तक
धानखेती सीढ़ियाँ,
मिट्टी में उग रहीं
नई हरी पीढ़ियाँ,
उड़ती हुई नदी पर
बनती मिटती नौका,
पुल बारिश का!
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

डूब कर देखो ये है गंगा गणित विज्ञान की।
ये परम आनंद है वाणी स्वयं भगवान की।

~ विनोद तिवारी

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