वर्षों से जो मौन खड़े थे
     
     निर्विकार निर्मोह बड़े थे
उन पाषाणों से अब क्यूँकर अश्रुधार बह निकली अविरल
     
     फिर मन में ये कैसी हलचल ?
     
     निश्चल जिनको जग ने माना
     
     गुण-स्वभाव से स्थिर नित जाना
चक्रवात प्रचंड उठते हैं क्यूँ अंतर में प्रतिक्षण, प्रतिपल
     
     फिर मन में ये कैसी हलचल ?
     
     युग बीते जिनसे मुख मोड़ा
     
     जिन स्मृतियों को पीछे छोड़ा
अब क्यूँ बाट निहारें उनकी पलपल होकर लोचन विह्वल?
     
     फिर मन में ये कैसी हलचल ?