अप्रतिम कविताएँ
पतझड़ की पगलाई धूप
भोर भई जो आँखें मींचे,
तकिये को सिरहाने खींचे,
लोट गई इक बार पीठ पर
ले लम्बी जम्हाई धूप,
अनमन सी अलसाई धूप |

पोंछ रात का बिखरा काजल,
सूरज नीचे दबता आँचल,
खींच अलग हो दबे पैर से,
देह-चुनर सरकाई धूप,
यौवन ज्यों सुलगाई धूप |

फुदक-फुदक खेले आँगन भर
खाने-खाने एक पाँव पर,
पत्ती-पत्ती आँख-मिचौली
बचपन सी बौराई धूप,
पतझड़ की पगलाई धूप |
- मानोशी चटर्जी
Manoshi Chatterjee
Email : [email protected]
विषय:
प्रकृति (37)
पतझड़ (2)
सूरज धूप (8)

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इस महीने :
'एक आशीर्वाद'
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जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
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हँसें
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..

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कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
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पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
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