अप्रतिम कविताएँ

मनमीत
जब कहीं
अनजान रजनी को
ढुलकती साँझ ने
काला,
सितारों से दमकता,
शाल पश्मीना
कभी ओढ़ा दिया --
याद कितने गीत आए।
बिछड़े हुए,
कब से न जाने
मीत आए।
सच कहूँ?
इक पल ना बीता;
तुम्हारी क़सम,
तुम बहुत याद आए।

जब कहीं,
बहकी हवाओं ने
सुकोमल हाथ से,
लजती उषा को
बाज़ुओं में थाम कर,
घूंघट ज़रा सरका दिया
थरथराते ओंठ पर
स्पर्श तेरे याद आए।
गले में दो बाज़ुओं के हार की
उस याद में
ज़िंदगी की हर कसकती हार को
हम भूल आए।
- जोगेंद्र सिंह

काव्यालय को प्राप्त: 15 Aug 2019. काव्यालय पर प्रकाशित: 28 Feb 2020

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              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

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खोजती जब नींद के पल,
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मैं मलय की वात रे मन!

चिर-विषाद-विलीन मन की,
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..

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