जीवन की आपाधापी में  खुद से मिल पाना 
ऐसा ही तो होता है ना! कविता लिख पाना 
वर्ष पर्यन्त गुलमोहर प्रतीक्षारत रहता है 
कुछ दिन धमनियों में नारंगी रंग बहता है
पुष्पों का खिलना और वृक्ष का 
खिल खिल खिल जाना 
ऐसा ही तो होता है ना! कविता लिख पाना 
प्रेम के नर्तन में राधा पहले पायल हो जाती है 
विरह वेदना गीतों से  फिर घायल हो जाती है 
कृष्ण का एक आलिंगन और घावों का 
सिल सिल सिल जाना 
ऐसा ही तो होता है ना! कविता लिख पाना 
एक समय उपरान्त प्रसव पीड़ा बन्द होती है 
कभी मुक्तक जन्मता है कभी छन्द होती है 
और मन की वीणा के तारों का 
हिल हिल हिल जाना 
ऐसा ही तो होता है ना! कविता लिख पाना
					
		
					
			
		
		
					काव्यालय को प्राप्त: 24 May 2024. 
							काव्यालय पर प्रकाशित: 9 Aug 2024