अप्रतिम कविताएँ
झीनी-झीनी बीनी चदरिया
झीनी-झीनी बीनी चदरिया,
काहे कै ताना, काहै कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया।
इंगला पिंगला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनी चदरिया।
साँई को सियत मास दस लागै, ठोक-ठोक कै बीनी चदरिया॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी, ओढ़ी कै मैली कीनी चदरिया।
दास 'कबीर' जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया॥
- कबीरदास
विषय:
अध्यात्म दर्शन (34)

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