अप्रतिम कविताएँ
विस्मृति की लहरें
विस्मृति की लहरें
ऊँची उठ रही हैं
इति की यह तटिनी
बाढ़ पर है अब

ढह रही हैं मन से घटनाएँ
छोटी-बड़ी यादें और चेहरे
जिनका मैं सब-कुछ जानता था
जिन्हें मैं लगभग पर्याय मानता था
अपने होने का

सब किनारे के वृक्षों की तरह
गिर-गिरकर बहते जा रहे हैं
मेरी इति की धार में
दूर-दूर से व्यक्ति-वृक्ष
आ रहे हैं और
मैं उन्हें हल्का-हल्का
पहचान रहा हूँ

जान रहा हूँ बीच-बीच में
कि इति की तटिनी
बाढ़ पर है
ऊँची उठ रही हैं
विस्मृति की लहरें !
- भवानीप्रसाद मिश्र
विस्मृति : भूल जाना; इति : समाप्ति, पूर्णता; तटिनी : नदी, सरिता

साहित्य अकादेमी पुरस्कृत संकलन "बुनी हुई रस्सी" से

एमज़ोन पर उपलब्ध

काव्यालय पर प्रकाशित: 7 Jun 2019

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भाग 6 लय में लय तोड़ना

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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

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चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

छंद में लिखना - आसान तरकीब
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              लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 2 मूल तरकीब

वाणी मुरारका
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