अप्रतिम कविताएँ
नया वर्ष
नए वर्ष में नई पहल हो
कठिन ज़िंदगी और सरल हो
अनसुलझी जो रही पहेली
अब शायद उसका भी हल हो
जो चलता है वक़्त देखकर
आगे जाकर वही सफल हो
नए वर्ष का उगता सूरज,
सबके लिए सुनहरा पल हो
समय हमारा सदा साथ दे
कुछ ऐसी आगे हलचल हो
सुख के चौक पुरैं हर द्वारे
सुखमय आंगन का हर पल हो।
- अज्ञात

काव्यालय को प्राप्त: 1 Jun 2015. काव्यालय पर प्रकाशित: 7 Jan 2022

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सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
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शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
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दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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