अप्रतिम कविताएँ
नया वर्ष
नए वर्ष में नई पहल हो
कठिन ज़िंदगी और सरल हो
अनसुलझी जो रही पहेली
अब शायद उसका भी हल हो
जो चलता है वक़्त देखकर
आगे जाकर वही सफल हो
नए वर्ष का उगता सूरज,
सबके लिए सुनहरा पल हो
समय हमारा सदा साथ दे
कुछ ऐसी आगे हलचल हो
सुख के चौक पुरैं हर द्वारे
सुखमय आंगन का हर पल हो।
- अज्ञात

काव्यालय को प्राप्त: 1 Jun 2015. काव्यालय पर प्रकाशित: 7 Jan 2022

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झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।

झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।

तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..

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