अप्रतिम कविताएँ

कविता की कविता
जीवन की आपाधापी में खुद से मिल पाना
ऐसा ही तो होता है ना! कविता लिख पाना

वर्ष पर्यन्त गुलमोहर प्रतीक्षारत रहता है
कुछ दिन धमनियों में नारंगी रंग बहता है
पुष्पों का खिलना और वृक्ष का
खिल खिल खिल जाना
ऐसा ही तो होता है ना! कविता लिख पाना

प्रेम के नर्तन में राधा पहले पायल हो जाती है
विरह वेदना गीतों से फिर घायल हो जाती है
कृष्ण का एक आलिंगन और घावों का
सिल सिल सिल जाना
ऐसा ही तो होता है ना! कविता लिख पाना

एक समय उपरान्त प्रसव पीड़ा बन्द होती है
कभी मुक्तक जन्मता है कभी छन्द होती है
और मन की वीणा के तारों का
हिल हिल हिल जाना
ऐसा ही तो होता है ना! कविता लिख पाना
- विनीत मिश्रा
काव्यपाठ: हेमंत देवलेकर
प्रसव -- बच्चे को जन्म देना

काव्यालय को प्राप्त: 24 May 2024. काव्यालय पर प्रकाशित: 9 Aug 2024

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 कविता की कविता
 शून्य कर दो
इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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