अप्रतिम कविताएँ

इंतज़ार सयाना हो गया
इंतज़ार सयाना हो गया
हर काम निबटाता है सलीक़े से
हर बात में ले आता है तुम्हें
जब-तब वादों की दे कर दुहाई
और जब भी डगमगाता है भरोसा
मन्नत के धागों में जोड़ लेता है
.... एक और ज़िद्दी गाँठ
इंतज़ार सयाना हो गया
हो जाता है बूढ़ा हर शाम थोड़ा
चल पड़ता है फिर .... हर सुबह
नयी झुर्रियाँ समेटता
नज़रों में उतरते मोतियाबिंद से बेपरवाह
जा खड़ा होता है
उनींदे रास्तों पर मील के पत्थर सा
क्यूंकि इंतज़ार सयाना हो गया
- शिखा गुप्ता
काव्यपाठ: शिखा गुप्ता
Shikha Gupta
Email : [email protected]

काव्यालय को प्राप्त: 6 Nov 2017. काव्यालय पर प्रकाशित: 7 Jul 2023

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सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

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सूरज को, कच्ची नींद से
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दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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