अप्रतिम कविताएँ

क्या हूँ मैं
कलाई से कांधों तक आभूषित
एक नारी का प्रतिमान
मोअन-जो-दाड़ो में दबा
मेरा अनकथ संसार
क्या हूँ मैं ?
पन्नों में सिमटा
मात्र एक युगीन वृत्तान्त ?

खोया सारा समर्पित अतीत
लक्ष्मण-रेखा के पार
अग्नि भी जला ना पायी
एक संशय का तार
क्या हूँ मैं ?
युग-युग से पोषित मानस में
मर्यादा का प्रचार ?

इच्छा-प्राप्ति से संलग्न
आशीष में बसा श्राप
सप्त वचन के उपहास से
बिंधा आत्म-सम्मान
क्या हूँ मैं ?
धर्म-युद्ध पर आरोपित
मुर्ख अहंकार का प्रतिकार ?

देवी से दासी तक झूलता
एक अनसुलझा विचार
सदी दर सदी स्थापित
मानवता का संस्कार
क्या हूँ मैं ?
बाज़ार के अनुरूप बदलता
मात्र एक उत्पाद ?
- शिखा गुप्ता
Shikha Gupta
Email : [email protected]

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'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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