अप्रतिम कविताएँ

क्या हूँ मैं
कलाई से कांधों तक आभूषित
एक नारी का प्रतिमान
मोअन-जो-दाड़ो में दबा
मेरा अनकथ संसार
क्या हूँ मैं ?
पन्नों में सिमटा
मात्र एक युगीन वृत्तान्त ?

खोया सारा समर्पित अतीत
लक्ष्मण-रेखा के पार
अग्नि भी जला ना पायी
एक संशय का तार
क्या हूँ मैं ?
युग-युग से पोषित मानस में
मर्यादा का प्रचार ?

इच्छा-प्राप्ति से संलग्न
आशीष में बसा श्राप
सप्त वचन के उपहास से
बिंधा आत्म-सम्मान
क्या हूँ मैं ?
धर्म-युद्ध पर आरोपित
मुर्ख अहंकार का प्रतिकार ?

देवी से दासी तक झूलता
एक अनसुलझा विचार
सदी दर सदी स्थापित
मानवता का संस्कार
क्या हूँ मैं ?
बाज़ार के अनुरूप बदलता
मात्र एक उत्पाद ?
- शिखा गुप्ता
Shikha Gupta
Email : [email protected]
विषय:
स्त्री (18)

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रौशनी से नहाए इस शहर में
खुशियों की लड़ियाँ जगमगाती हैं
चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।

धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

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