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गांव
एक अंधेरा, एक ख़ामोशी, और तनहाई,
रात के तीन पांव होते हैं।
ज़िन्दगी की सुबह के चेहरे पर,
रास्ते धूप छाँव होते हैं।
ज़िन्दगी के घने बियाबाँ में,
प्यार के कुछ पड़ाव होते हैं।
अजनबी शहरों में, अजनबी लोगों के बीच,
दोस्तों के भी गांव होते हैं।
-
मधुप मोहता
Madhup Mohta
Email :
[email protected]
Madhup Mohta
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गांव
रोशनी
इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'
सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।
छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा
सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय
आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!
सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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