अप्रतिम कविताएँ
एक बौनी बूँद
एक बौनी बूँद ने
मेहराब से लटक
अपना कद
लंबा करना चाहा

बाकी बूँदें भी
देखा देखी
लंबा होने की
होड़ में
धक्का मुक्की
लगा लटकीं

क्षण भर के लिए
लंबी हुई
फिर गिरीं
और आ मिलीं
अन्य बूँदों में
पानी पानी होती हुई
नादानी पर अपनी।
- दिव्या माथुर
Divya Mathur
email: divyamathur@aol.com

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एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

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