अप्रतिम कविताएँ
अनुनय
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
     अधर अधर से छू लेने दो!
है बात वही, मधुपाश वही,
     सुरभि सुधारस पी लेने दो!
         अधर अधर से छू लेने दो!
कंवल पंखुरी लाल लजीली,
     है थिरक रही, नई कुसुम सी!
रश्मिनूतन को, सह लेने दो!
          मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
तुम जीवन की मदमाती लहर,
          है वही डगर,
डगमग पग भर,
     सुखसुमन-सुधा रस पी लेने दो!
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
     अधर अधर से छू लेने दो!
- लावण्या शाह
विषय:
प्रेम (60)
कामुकता (3)

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 अनुनय
 स्मृति दीप
इस महीने :
'नव ऊर्जा राग'
भावना सक्सैना


ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

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इस महीने :
'दरवाजे में बचा वन'
गजेन्द्र सिंह


भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

..

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इस महीने :
'पेड़ों का अंतर्मन'
हेमंत देवलेकर


कल मानसून की पहली बरसात हुई
और आज यह दरवाज़ा
ख़ुशी से फूल गया है

खिड़की दरवाज़े महज़ लकड़ी नहीं
विस्थापित जंगल होते हैं

मुझे लगा, मैं पेड़ों के बीच से आता-जाता हूँ
टहनियों पर ...
..

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इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

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