अप्रतिम कविताएँ
अनुनय
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
     अधर अधर से छू लेने दो!
है बात वही, मधुपाश वही,
     सुरभि सुधारस पी लेने दो!
         अधर अधर से छू लेने दो!
कंवल पंखुरी लाल लजीली,
     है थिरक रही, नई कुसुम सी!
रश्मिनूतन को, सह लेने दो!
          मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
तुम जीवन की मदमाती लहर,
          है वही डगर,
डगमग पग भर,
     सुखसुमन-सुधा रस पी लेने दो!
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
     अधर अधर से छू लेने दो!
- लावण्या शाह
विषय:
प्रेम (62)
कामुकता (5)

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..

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जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।

धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

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