अप्रतिम कविताएँ
अधूरी साधना
प्रियतम मेरे,
सब भिन्न भिन्न बुनते हैं
गुलदस्तों को,
भावनाओं से,
विचारों से।
मैं तुम्हे बुनूँ
अपनी साँसों से।
भावनायें स्थिर हो जाएँ,
विचारधारा भी,
होंठ भी मौन रहे -
और हर श्वास
नित तुम्हारा नाम कहे -
और तुम बुनते रहो।

एक घड़ी आएगी फिर
मेरी बंद पलकों के सम्मुख
तुम निराकार साकार होगे।
तुम बाँहों में अपनी,
मेरी साँसों को समेट लोगे।
फिर न होगा मिलना,
न बिछड़ना, न जन्म-मरण,
न मैं।
सिर्फ तुम मेरे प्रियतम -
अपना स्वरूप पाकर -
अनंत।
- वाणी मुरारका
Vani Murarka
[email protected]

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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 6 लय में लय तोड़ना

वाणी मुरारका

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

वाणी मुरारका
इस महीने :
'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 4 कई गीत और कविताएँ (16 मात्रा)

वाणी मुरारका

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 3 खास विषयों पर लिखना

वाणी मुरारका
इस महीने :
'कौन तुम'
डा. महेन्द्र भटनागर


कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!

              लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 2 मूल तरकीब

वाणी मुरारका
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