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सखी, इन नैनन तें घन हारे
सखी, इन नैनन तें घन हारे ।
बिन ही रितु बरसत निसि बासर, सदा मलिन दोउ तारे ॥
ऊरध स्वाँस समीर तेज अति, सुख अनेक द्रुम डारे ।
दिसिन्ह सदन करि बसे बचन-खग, दुख पावस के मारे ॥
सुमिरि-सुमिरि गरजत जल छाँड़त, अंसु सलिल के धारे ॥
बूड़त ब्रजहिं 'सूर' को राखै, बिनु गिरिवरधर प्यारे ॥
- सूरदास
Ref: Swantah Sukhaaya
Pub: National Publishing House, 23 Dariyagunj, New Delhi - 110002

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सूरदास
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 निसिदिन बरसत नैन हमारे
 पिया बिन नागिन काली रात
 प्रीति करि काहु सुख न लह्यो
 मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे
 मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो
 सखी, इन नैनन तें घन हारे
'बेकली महसूस हो तो'
विनोद तिवारी

बेकली महसूस हो तो गुनगुना कर देखिये।
दर्द जब हद से बढ़े तब मुस्कुरा कर देखिये।

रूठते हैं लोग बस मनुहार पाने के लिए
लौट आएगा, उसे फिर से बुला कर देखिये।

आपकी ही याद में शायद वह हो खोया हुआ
पास ही होगा कहीं, आवाज़ देकर देखिये।

हारती है बस मोहब्बत ही ख़ुदी के खेल में
हार कर अपनी ख़ुदी, उसको...

पूरी ग़ज़ल यहां पढ़ें
This Month :
'Pukaar'
Anita Nihalani


koee kathaa anakahee n rahe
vyathaa koee anasunee n rahe,
jisane kahanaa-sunanaa chaahaa
vaaNee usakee mukhar ho rahe!

ek prashn jo soyaa bheetar
ek jashn bhee khoyaa bheetar,
jisane use jagaanaa chaahaa
..

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