बंगला मूल जन गण मन |
शब्दार्थ |
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अहरह तव आह्वान प्रचारित |
अहरह: निरन्तर; तव: तुम्हारा |
पतन-अभ्युदय-बन्धुर-पंथा |
अभ्युदय: उत्थान; बन्धुर: मित्र का |
घोर-तिमिर-घन-निविड़-निशीथे |
निविड़: घोंसला |
रात्रि प्रभातिल उदिल रविछवि - रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
प्रभातिल: प्रभात में बदला; उदिल: उदय हुआ |