अप्रतिम कविताएँ
बसंत और पतझड़

हिन्दी अनुवाद

मैं तेज़ी से भागी स्कूल के बाहर
बगीचे से होते हुए, जंगल तक
बिताया पूरा बसंत, अब तक का सीखा भूलने में

दो दूनी चार और मेहनत और बाकी सब
बनना विनम्र और उपयोगी, होना सफल और बाकी सब
मशीन और तेल, प्लास्टिक और पैसे और बाकी सब

पतझड़ आने तक कुछ भर चुके थे मेरे घाव, तभी बुला लिया गया मुझे
उन्हीं चॉक और डेस्क से भरे कमरों में, बैठकर याद करने

कैसे बह रही थी नदी पत्थरों पर
कैसे गा रहे थे जंगली पक्षी जिनके बैंक में नहीं थी फूटी कौड़ी
कैसे ओढ़े हुए थे फूल, कुछ नहीं बस नूर!


अंग्रेज़ी मूल

I went out of the schoolhouse fast
and through the gardens to the woods,
and spent all summer forgetting what I'd been taught --

two times two, and diligence, and so forth,
how to be modest and useful, and how to succeed and so forth,
machines and oil and plastic and money and so forth.

By fall I had healed somewhat, but was summoned back
to the chalky rooms and the desks, to sit and remember

the way the river kept rolling its pebbles,
the way the will wrens sang though they hadn't a penny in the bank,
the way the flowers were dressed in nothing but light.


- मेरी ऑलिवर
- अनुवाद : नूपुर अशोक
नूर : चमक

काव्यालय को प्राप्त: 22 Jun 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 16 Sep 2022

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इस महीने :
'पिता: वह क्यों नहीं रुके'
ब्रज श्रीवास्तव


मेरे लिए, मेरे पिता
तुम्हारे लिए, तुम्हारे पिता जैसे नहीं हैं,

एकांत की खोह में जब जाता हूँ
बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...


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