'मेरा अपना चाँद' सुशोभित
चीड़ में अटका चाँद
बूँद बूँद टपका रहता है
औंधा लटका चाँद।
दुनियाभर में इसके डेरे
पखवाड़े पखवाड़े फेरे
अबकी घर मेरे रुक जाए
रस्ता भटका चाँद।
सँझा से सँवलाई छाया
बरखा में बिसराई माया
देखो कितना दु:ख सहता है
मेरा अपना चाँद।
जी करता है गले लगा लूँ
कोट के अंदर कहीं छुपा लूँ
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'नीड़ का निर्माण ' हरिवंशराय बच्चन
नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
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'जीवन की करो गिनती' प्रकाश देवकुलिश
इससे पहले कि अँधेरा पोत दे काला रंग
सफेद रोशनी पर
फैला जो है उजास
उसकी बातें करो
अँधेरे की बूँद को समुद्र मत बनाओ
इससे पहले कि मृत्यु अपने को बदल दे शोर में
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'धीरे-धीरे' वाणी मुरारका
एहसासों की लड़ी है
ये ज़िन्दगी।
धीरे-धीरे आगे बढ़ती हूँ ―
एक एक एहसास को
सहेज कर,
समेट कर,
...
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