अप्रतिम कविताएँ
पेड़ों का अंतर्मन
कल मानसून की पहली बरसात हुई
और आज यह दरवाज़ा
ख़ुशी से फूल गया है

खिड़की दरवाज़े महज़ लकड़ी नहीं
विस्थापित जंगल होते हैं

मुझे लगा, मैं पेड़ों के बीच से आता-जाता हूँ
टहनियों पर बैठता हूँ
पेड़ों की खोखल में रखता हूँ किताबें
मैं जंगल में घिरा हूँ
किंवदंतियों में रहने वाला
आदिम ख़ुशबू से भरा जंगल

कल मौसम की पहली बारिश हुई
और आज यह दरवाज़ा
चौखट में फंसने लगा है
वह बंद होना नहीं चाहता
ठीक दरख़्तों की तरह

एक कटे हुए जिस्म में
पेड़ का ख़ून फिर दौड़ने लगा है
और यह दरवाज़ा
खो गया है बचपन की बारिशों में :

वह स्मृतियों में आज फिर हरा हुआ है‌।
- हेमंत देवलेकर
इससे प्रेरित पढ़िए यह कविता
विषय:
प्रकृति (41)
पेड़ (6)

काव्यालय को प्राप्त: 30 Dec 2023. काव्यालय पर प्रकाशित: 20 Jun 2025

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
हेमंत देवलेकर
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 पेड़ों का अंतर्मन
 हर घर एक पृथ्वी
 हार्मनी
इस महीने :
'365 सिक्के'
पारुल 'पंखुरी'


तीन सौ पैंसठ
सिक्के थे गुल्लक में
कुछ से मुस्कुराहटें खरीदीं
कुछ से दर्द,
कुछ से राहतें,
कुछ खर्चे ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'चाँद के साथ-साथ'
चेतन कश्यप


पेड़ों के झुरमुट से
झाँकता
चाँद पूनम का
बिल्डिंगों की ओट में
चलता है साथ-साथ
भर रास्ते

पहुँचा के घर
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website