कल मानसून की पहली बरसात हुई
और आज यह दरवाज़ा
ख़ुशी से फूल गया है
खिड़की दरवाज़े महज़ लकड़ी नहीं
विस्थापित जंगल होते हैं
मुझे लगा, मैं पेड़ों के बीच से आता-जाता हूँ
टहनियों पर बैठता हूँ
पेड़ों की खोखल में रखता हूँ किताबें
मैं जंगल में घिरा हूँ
किंवदंतियों में रहने वाला
आदिम ख़ुशबू से भरा जंगल
कल मौसम की पहली बारिश हुई
और आज यह दरवाज़ा
चौखट में फंसने लगा है
वह बंद होना नहीं चाहता
ठीक दरख़्तों की तरह
एक कटे हुए जिस्म में
पेड़ का ख़ून फिर दौड़ने लगा है
और यह दरवाज़ा
खो गया है बचपन की बारिशों में :
वह स्मृतियों में आज फिर हरा हुआ है।
काव्यालय को प्राप्त: 30 Dec 2023.
काव्यालय पर प्रकाशित: 20 Jun 2025