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तुम
एक ख़्वाब की नदी सी
मुझमें जो बहती हो
अलसाए दिन ढ़ोते हैं
उनींदी रातों को
मैं जानता नहीं ये क्या है
मैं सोचता नहीं ये क्यों है
हर बार तुम्हे मिटाता हूँ
हर बार तुम बन जाती हो
एक ख़्वाब की नदी सी ...
- जितेन्द्र दवे
Jitendra Dave
email:
[email protected]
Jitendra Dave
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विषय:
प्रेम (62)
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..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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गीता दूबे
रौशनी से नहाए इस शहर में
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चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।
धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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