अप्रतिम कविताएँ
अंतहीन संवाद
आज भी तुम अपनी
झीनी सी मुस्कुराहट ले
मेरे पास आते हो
फिर हौले से
मेरे पहलू में
बैठ जाते हो
शनै: शनै:
मुझ पर स्नेह के पंख
पसारते हो

मैं,
अपेक्षाओं और
आकांक्षाओं के
झंझावत में डूब
तुमको अनदेखा कर देता हूँ

प्रिय,
अगर तुम
अपने को मुझसे बाँट पाते
शायद,
ज़्यादा ना सही
थोड़ा तो दुनियादारी से
उबर पाते!

किसी रोज़
तुम आना
अवसाद को
परे रख
मेरे पहलू
में बस बैठ जाना...

प्रश्नवाचक निगाह
पर अर्ध-विराम लगा,
मुझ तक
पूर्णविराम
की गुंजायश में,
उम्मीदों का सवेरा
और
आज की शाम ही काट जाना

कल की कल देखेंगे
एक उजाले की उम्मीद में
फिर एक बेहतरीन शाम
पर अवसाद के साये
नहीं पड़ने देंगे
- मंजरी गुप्ता पुरवार
Manjari Gupta Purwar: [email protected]

काव्यालय को प्राप्त: 26 Oct 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 22 Dec 2023

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
मंजरी गुप्ता पुरवार
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 अंतहीन संवाद
 सुर्खियाँ
इस महीने :
'या देवी...'
उपमा ऋचा


1
सृष्टि की अतल आंखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आई है देवी
रंग और ध्वनि का निरंजन नाद बनकर
लेकिन अभी टूटी नहीं है धरती की नींद
इसलिए जागेगी देवी अहोरात्र...

2
पूरब में शुरू होते ही
दिन का अनुष्ठान
जाग उठी हैं सैकड़ों देवियाँ
एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website