अप्रतिम कविताएँ
प्रथम रश्मि
प्रथम रश्मि का आना रंगिणि!
तूने कैसे पहचाना?
कहाँ, कहाँ हे बाल-विहंगिनि!
पाया तूने वह गाना?
सोयी थी तू स्वप्न नीड़ में,
पंखों के सुख में छिपकर,
ऊँघ रहे थे, घूम द्वार पर,
प्रहरी-से जुगनू नाना।

शशि-किरणों से उतर-उतरकर,
भू पर कामरूप नभ-चर,
चूम नवल कलियों का मृदु-मुख,
सिखा रहे थे मुसकाना।

स्नेह-हीन तारों के दीपक,
श्वास-शून्य थे तरु के पात,
विचर रहे थे स्वप्न अवनि में
तम ने था मंडप ताना।
कूक उठी सहसा तरु-वासिनि!
गा तू स्वागत का गाना,
किसने तुझको अंतर्यामिनि!
बतलाया उसका आना!
- सुमित्रानंदन पंत

काव्यालय को प्राप्त: 21 May 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 27 May 2022

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 विजय ('उत्तरा' से)
'बेकली महसूस हो तो'
विनोद तिवारी

बेकली महसूस हो तो गुनगुना कर देखिये।
दर्द जब हद से बढ़े तब मुस्कुरा कर देखिये।

रूठते हैं लोग बस मनुहार पाने के लिए
लौट आएगा, उसे फिर से बुला कर देखिये।

आपकी ही याद में शायद वह हो खोया हुआ
पास ही होगा कहीं, आवाज़ देकर देखिये।

हारती है बस मोहब्बत ही ख़ुदी के खेल में
हार कर अपनी ख़ुदी, उसको...

पूरी ग़ज़ल यहां पढ़ें
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी


कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

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