अप्रतिम कविताएँ
प्रतीक्षा के पल
जहाँ भी देखूँ तुम्हीं हो हर ओर
प्रतीक्षा के पल, फिर कहाँ किस ओर ॥

चेहरे पर अरुणाई सी खिल जाती
धड़कनें स्पन्दन बन मचल जाती
यादों की बारिश में, नाचे मन मोर ॥

कब तन्हा जब साथ तुम, बन परछाई
साथ देख तुम्हारा खुदा भी मांगे मेरी तन्हाई
मेरे हर क्षण को सजाया, तुमने चित्त चोर ॥

मेरे संग चांद भी करता रहता इंतज़ार
तेरी हर बात को उससे कहा मैंने कितनी बार
फिर भी सुनता मुस्कुराकर, जब तक न होती भोर ॥

तुम्हारे लिए हूँ मैं शायद, बहुत दूर
तुम पर पास मेरे, जितना आँखों के नूर
मेरी साँसों को बाँधे, तेरे स्नेह की डोर ॥
- माहिमा बोकाडिया
Mahima Bokariya
Email: [email protected]
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'बेकली महसूस हो तो'
विनोद तिवारी

बेकली महसूस हो तो गुनगुना कर देखिये।
दर्द जब हद से बढ़े तब मुस्कुरा कर देखिये।

रूठते हैं लोग बस मनुहार पाने के लिए
लौट आएगा, उसे फिर से बुला कर देखिये।

आपकी ही याद में शायद वह हो खोया हुआ
पास ही होगा कहीं, आवाज़ देकर देखिये।

हारती है बस मोहब्बत ही ख़ुदी के खेल में
हार कर अपनी ख़ुदी, उसको...

पूरी ग़ज़ल यहां पढ़ें
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी


कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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