अप्रतिम कविताएँ
पिता: वह क्यों नहीं रुके
मेरे लिए, मेरे पिता
तुम्हारे लिए, तुम्हारे पिता जैसे नहीं हैं,

एकांत की खोह में जब जाता हूँ
बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी ज़रूरी नहीं कि
पिता की याद आ जाये।

आसमान की ओर तकूँ
तो दिखाई दे जाये उनका अक्स
ऐसा भी नहीं होता

वह दिखाई देते हैं मुझे कभी बेटी में
जब वह मुझसे कहती है कि
पापा आप टहलने जाया करो
जल्दी जागकर।

माँ कहती है कि बेटी को
खूब पढाओ तो वह
याद आ जाते हैं

बहुत वृद्ध जन मिलते हैं तो
सोचता हूँ कि वह क्यों नहीं रुके?
ऐसे होने के लिए।

पिता कभी भी कौंध जाते हैं
पर इस वक़्त नहीं
जब मैं उनको खोज रहा हूँ

इतना ही याद है कि
जब वह कभी भी एकदम चमकते हैं
याद बनकर, तो मैं
चौंक जाता हूँ और बहुत देर तक
यही सोचता रहता हूँ कि
कितना सुखद होता है पिता का
जीवन भर साथ रहना।

- ब्रज श्रीवास्तव
विषय:
रिश्ते (17)

काव्यालय को प्राप्त: 20 Mar 2023. काव्यालय पर प्रकाशित: 8 Nov 2024

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'एक मनःस्थिति '
शान्ति मेहरोत्रा


कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
मेरी गरम साँसों से पिघल कर
मोम-सी बह गई हैं।

केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'खिलौने की चाबी'
नूपुर अशोक


इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी
कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website