मेरे लिए, मेरे पिता
तुम्हारे लिए, तुम्हारे पिता जैसे नहीं हैं,
एकांत की खोह में जब जाता हूँ
बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी ज़रूरी नहीं कि
पिता की याद आ जाये।
आसमान की ओर तकूँ
तो दिखाई दे जाये उनका अक्स
ऐसा भी नहीं होता
वह दिखाई देते हैं मुझे कभी बेटी में
जब वह मुझसे कहती है कि
पापा आप टहलने जाया करो
जल्दी जागकर।
माँ कहती है कि बेटी को
खूब पढाओ तो वह
याद आ जाते हैं
बहुत वृद्ध जन मिलते हैं तो
सोचता हूँ कि वह क्यों नहीं रुके?
ऐसे होने के लिए।
पिता कभी भी कौंध जाते हैं
पर इस वक़्त नहीं
जब मैं उनको खोज रहा हूँ
इतना ही याद है कि
जब वह कभी भी एकदम चमकते हैं
याद बनकर, तो मैं
चौंक जाता हूँ और बहुत देर तक
यही सोचता रहता हूँ कि
कितना सुखद होता है पिता का
जीवन भर साथ रहना।
काव्यालय को प्राप्त: 20 Mar 2023.
काव्यालय पर प्रकाशित: 8 Nov 2024