अप्रतिम कविताएँ
नृत्य
धूसर रेत के
टीले पर
चाँदनी
आई उतर

साठ कली का
घाघरा
अँगिया
एक कली भर

पीले, लाल
सुर्ख रंगों से
रंगी थी
उसकी चूनर

वाणी सुरीली
कमर लचीली
पाँव उठे जो इस गोरी के
कैसे झूमी रेत नचीली।
- दिव्या माथुर
Divya Mathur
email: divyamathur at aol dot com

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क्लेर हार्नर


कब्र पे मेरी बहा ना आँसू
हूँ वहाँ नहीं मैं, सोई ना हूँ।

झोंके हजारों हवाओं की मैं
चमक हीरों-सी हिमकणों की मैं
शरद की गिरती फुहारों में हूँ
फसलों पर पड़ती...
..

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