अप्रतिम कविताएँ

किरण
ज्ञात नहीं जानें किस द्वार से
कौन से प्रकार से,
मेरे गृहकक्ष में,
दुस्तर-तिमिरदुर्ग-दुर्गम-विपक्ष में-
उज्ज्वल प्रभामयी
एकाएक कोमल किरण एक आ गयी।
बीच से अँधेरे के हुए दो टूक :
विस्मय-विमुग्ध
मेरा मन
पा गया अनन्त धन।

रश्मि वह सूक्ष्माकार,
कज्जल के कूट में उसी प्रकार,
जौलों रही उज्ज्वल बनी रही;
ओठों पर हास रहा हँसता हुआ वही।
किन्तु उसी हास-सी,
वीचि के विलास-सी,
विद्युत-प्रवाहमयी
जैसी वह आयी बस वैसी ही चली गयी।

एक ही निमेष में
मेरे मरुदेश में
आ कर सुधा की धार अमृत पिला गयी,
और फिर देखते ही देखते बिला गयी।
कोई दिव्य देवी दयादीप लिये जाती थी;
मार्ग में सुवर्ण-रश्मि-राशि बरसाती थी।
उसमें से एक यह रश्मि आ पड़ी थी यहाँ,
किन्तु वह रहती भला कहाँ,

मेरा घर सूना था,
अगम अरण्य का नमूना था।
रोकता उसे मैं यहाँ हाय! किस मुख से,
बाँधता उसे मैं किस भाँति भव-दुख से?
आयी वह, है क्या यही बात कम :
एक ही निमेष वह मेरे एक जन्म-सम
मेरे मनोदोल पै अनन्त-काल झूलेगा;
सुकृति समान वह मुझ को न भूलेगा।
- सियाराम शरण गुप्त
काव्यपाठ: नूपुर अशोक
संकलन रूपाम्बरा से
दुस्तर -- जिसके पार न जाया जा सके; तिमिरदुर्ग -- अंधेरे का किला; प्रभामयी -- प्रकाशमयी; कूट -- बक्सा (यहाँ कमरा); जौलों रही -- जबतक रही;
वीचि -- लहर; निमेष -- क्षण; मरुदेश -- रेगिस्तान; बिला गई -- खो गई; अरण्य -- जंगल; मनोदोल -- अस्थिर डोलता मन; सुकृति -- अच्छा काम

काव्यालय पर प्रकाशित: 30 Aug 2024

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
सियाराम शरण गुप्त
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 एक फूल की चाह
 किरण
इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'पिता: वह क्यों नहीं रुके'
ब्रज श्रीवास्तव


मेरे लिए, मेरे पिता
तुम्हारे लिए, तुम्हारे पिता जैसे नहीं हैं,

एकांत की खोह में जब जाता हूँ
बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...


काव्यालय के आँकड़े

वार्षिक रिपोर्ट
अप्रैल 2023 – मार्च 2024
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website