अप्रतिम कविताएँ
युद्ध की विभीषिका
युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते बचपन का, माँ के वत्सल का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

नन्हा सा मन ये क्या जाने हर ओर मचा क्यों नरसंहार?
है आग बरसती अंबर से हर ओर कत्ल गारद पुकार।
फूलों से मन हैं साँसत में हर ओर आग क्यों लगी हुई?
ढक गया धुऍं से चाँद और धरती का आँचल तार-तार।

आयत कुरान की डोल रही भूखे बचपन का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

बच्चों की आँखों की नींदें संगीत पायलों की धुन का।
अमराई से कोयल रूठी संगीत खो गया है मन का।
ना माँ का आँचल रहा शेष न बची थामने को उँगली
तस्वीरों में ममता बदली सोचो क्या होगा बचपन का।

डाला विनाश ने है झूला इस संदल वन का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?
- गजेन्द्र सिंह
कत्ल गारद - क़त्ल-ओ-गारत (जान-माल का नुक़सान, नरसंहार, खून खराबा); साँसत - दम घुटने का सा कष्ट
विषय:
युद्द तकरार (7)

काव्यालय को प्राप्त: 18 Jul 2025. काव्यालय पर प्रकाशित: 1 Aug 2025

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बेचैनियों का कभी
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1.
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यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो, ज़ोर का बहाव हो,
आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है!
..

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