वे लिखते हैं
लेकिन कागज पर नहीं
वे लिखते हैं धरती पर
वे लिखते हैं
लेकिन कलम से नहीं
वे लिखते हैं
हल की नोंक से।
वे धरती पर वर्णमाला नहीं
रेखाएं बनाते हैं
दिखाते हैं वे
मिट्टी को फाड़ कर
सृजन के आदिम और अनंत स्रोत
वे तय करते हैं
समय के ध्रुवांत
समय उनको नहीं काटता
समय को काटते हैं वे इस तरह कि
पसीना पोछते-पोछते
समय कब चला गया
पता ही नहीं चलता उन्हें
वे धरती पर लिखते हैं
फाल से जीवन का अग्रलेख
वे हरियाली पैदा करते हैं
वे लाली पैदा करते हैं
वे पामाली संचित करते हैं
शब्दों के बिना
जीवन को अर्थ देते हैं
ऊर्जा देते हैं, रस देते हैं, गंध देते हैं,
रंग देते हैं, रूप देते हैं
जीवन को वे झूमना सिखाते हैं
नाचना-गाना सिखाते हैं
लेकिन वे न लेखक हैं
और न कलाकार
वे धरती पर
हल की नोंक से लिखते हैं
उन्हें यह पता भी नहीं कि
लेखकों से उनका कोई रिश्ता है क्या?
उनमें कोई सर्जक क्षमता है क्या?
कविता साभार गीता दूबे
हल: बीज बोने के लिए जमीन जोतने का (तैयार करने का) एक उपकरण, plough;
फाल: हल का आगे का हिस्सा जिससे जमीन जोती जाती है,
ploughshare
पामाली : बर्बादी