कवि, आलोचक और व्यंग्य-लेखक के रूप में उनकी ख्याति थी। एक अच्छे वक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर भी उनकी विशिष्ट पहचान थी। राजनीतिक चेतना से संपन्न खगेंद्र जी ने पटना और रांची में रहते हुए देश-देशांतर की वैचारिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय सहभागिता की थी। प्रगतिशील लेखक संघ से गहरा जुड़ाव रखनेवाले खगेंद्र जी ने हिंदी साहित्य को कई बहुमूल्य कृतियां दीं-मसलन -‘धार एक व्याकुल’, ‘रक्त कमल परती पर’(कविता संग्रह), ‘छायावादी काव्य की भाषा’(शोध), ‘देह धरे को दंड’, ‘ईश्वर से भेंटवार्ता’ (व्यंग्य लेख -संग्रह); ‘आलोचना के बहाने’, ‘कविता का वर्तमान’, ‘दिव्या का सौंदर्य’, ‘समय, समाज और मनुष्य’, ‘प्रगतिशील आंदोलन के इतिहास पुरुष’ , ‘दिनकर : व्यक्तित्व और कृतित्व’, ‘नागार्जुन का कवि कर्म’ , ‘उपन्यास की महान परंपरा’, ‘हिंदी कहानी आज : पृष्ठभूमि और परिप्रेक्ष्य’ (आलोचना) तथा ‘आज का वैचारिक संघर्ष’ और ‘मार्क्सवादी विकल्प की प्रक्रिया’(वैचारिक लेखन)। आलोचक नामवर सिंह द्वारा पटना में दिए गए पांच प्रमुख भाषणों का संकलन-संपादन भी खगेंद्र जी ने ही किया था जो कि ‘आलोचक के मुख से’ नाम से प्रकाशित है।
खगेंद्र ठाकुर इतने सहज थे कि गांव-जवार की छोटी गोष्ठियों से लेकर महानगरों और अकादमिक संस्थानों में उनकी खूब आवाजाही थी। यही कारण है कि अंबा, औरंगाबाद, पलामू जैसी छोटी जगहों पर लोगों ने उन्हें करीब से देखा तो बनारस, इलाहाबाद और दिल्ली के लोगों ने उन्हें सुना-समझा।
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